एकीकृत एजेंसी बनने से नौले-धारों के उद्धार पर काम करने वाले विभिन्न विभाग एक अंब्रेला के नीचे एक साथ काम कर पाएंगे। आपको बता दे उत्तराखंड की संस्कृति और परंपरा में रचे-बसे नौले-धारों को संरक्षित और पुनर्जीवित करने के लिए एकीकृत एजेंसी बनाने की तैयारी है।
इसके लिए शासन स्तर पर स्प्रिंगशेड एंड रिवर रिजुवेनेशन एजेंसी (सारा) के गठन की कवायद की जा रही है। जलागम प्रबंधन को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है। एकीकृत एजेंसी बनने से नौले-धारों के उद्धार पर काम करने वाले विभिन्न विभाग एक अंब्रेला के नीचे एक साथ काम कर पाएंगे।
उत्तराखंड उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों को सिंचित करने वालीं अपनी अनेक सदानीरा नदियों के लिए जाना जाता है। प्रदेश में ग्लेशियर से निकलने वालीं और बरसाती को मिलाकर कुल 213 नदियों का विस्तृत जाल है। नौले-धारे और कई जलस्रोतों का पानी इन नदियों में मिलकर प्रवाह बढ़ाता है,
लेकिन एक अनुमान के अनुसार, प्रदेश में करीब 12 हजार जल स्रोत सूख चुके हैं, जो भविष्य के लिए बड़ी चिंता का विषय है।अभी तक प्रदेश में वन, नियोजन, वित्त, कृषि, ग्राम्य विकास, पेयजल, सिंचाई, लघु सिंचाई, राजस्व, पंचायती राज और शहरी विकास विभाग के साथ गैर सरकार संस्थाएं नौले-धारों को बचाने की दिशा में अपने-अपने ढंग से काम कर रहे हैं, लेकिन इनके अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं।
बता दें कि बीते दिनों मुख्य सचिव डॉ.एसएस संधु के स्तर पर इस मुद्दे पर चिंता जताई गई थी। फिर नौले-धारों व अन्य जलस्रोतों को संरक्षित, पुनर्जीवित करने को एकीकृत एजेंसी का विचार सामने आया। अब इसकी कवायद शुरू कर दी गई है।
सारा के गठन के बाद इसमें राज्य स्तर पर एक हाईपावर समिति, जिलों में जनपद स्तरीय एग्जीक्यूटिव समिति और गांव स्तर पर धारा-नौला संरक्षण समिति का गठन किया जाएगा। ये समितियां राज्यभर के सभी नौले-धारों के साथ वर्षा आधारित नदियों की मैपिंग करेंगी।
फिर संवेदनशील जल स्रोतों का चिन्हीकरण, चेकडैम का निर्माण, वर्षा जल संरक्षण के लिए पौधों का रोपण, चाल-खाल का निर्माण जैसे कार्य होंगे। इसके लिए जनसमुदाय को भी इनके उपचार में सहभागी बनाया जाएगा। प्रदेश में नौले-धारों को संरक्षित और पुनर्जीवित करने को लेकर कवायद शुरू की गई है।
इसके लिए स्प्रिंगशैड एंड रिवर रिजुविनेशन एजेंसी (सारा) के गठन का प्रस्ताव तैयार किया गया है। शीघ्र ही मुख्य सचिव के स्तर पर इसका प्रस्तुतीकरण किया जाएगा। इसके बाद प्रस्ताव मंजूरी के लिए कैबिनेट में भेजा जाएगा। एजेंसी के बनने से जल संरक्षण की दिशा में बेहतर ढंग से काम हो सकेगा।