उत्तराखंड के सीमांत गांवों को बंधी आस, आम जन को डबल इंजन से हैं ये उम्मीदें

चीन और नेपाल की सीमा से सटे उत्तराखंड के सीमांत गांव पलायन की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। सामरिक सुरक्षा और पर्यावरणीय संरक्षण व संवर्द्धन की दृष्टि से सीमा प्रहरी की भूमिका निभाने वाले सीमांत क्षेत्रों और उनके निवासियों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई उम्मीद जगाई है।

प्रधानमंत्री के आह्वान पर प्रदेश सरकार भी इन्हें प्रथम गांव का दर्जा देकर विकास की नई पटकथा लिखने की तैयारी में है। बुधवार को केंद्र की मोदी सरकार की ओर से प्रस्तुत किए जा रहे देश के बजट से उत्तराखंड की सरकार से लेकर आम जन को बड़ी उम्मीदें हैं। माना जा रहा है कि सीमांत क्षेत्रों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने का अभियान इस बजट के माध्यम से और गति पकड़ सकता है।

केंद्र की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं ने विकास की नई इबारत लिखी

हिमालयी राज्य उत्तराखंड में केंद्र की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं ने विकास की नई इबारत लिखी है। आलवेदर चारधाम रोड, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेललाइन, सीमांत क्षेत्रों में रोड कनेक्टिविटी के लिए भारतमाला, टनकपुर-बागेश्वर रेललाइन जैसी बड़े बजट की अवस्थापना विकास की योजनाएं आने वाले समय में प्रदेश के चहुंमुखी विकास, पर्यटन प्रदेश के रूप में आर्थिकी, आजीविका और रोजगार की दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।

डबल इंजन के दम ने ढांचागत विकास की आधारभूमि तैयार की है। इसकी शक्ति अब प्रदेश की लाइलाज होती समस्या पलायन को थामने में लगेगी। केंद्र सरकार के पिछले बजट में वाइब्रेंट विलेज योजना के रूप में पर्वतीय गांवों की सुध ली गई थी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चमोली जिले के सीमांत गांव माणा में सीमांत गांव को प्रथम गांव कहकर संबोधित कर चुके हैं। यही कारण है कि केंद्र के नए बजट को लेकर सीमांत गांवों में नई आस बंधी है।

दूरस्थ और दुर्गम के इन क्षेत्रों के महत्व को भी प्रधानमंत्री रेखांकित कर चुके हैं। ढांचागत सुविधाओं को इन क्षेत्रों के संकल्प को दर्शाते हुए केदारनाथ और हेमकुंड साहिब के लिए रोपवे परियोजनाओं का शिलान्यास प्रधानमंत्री कर चुके हैं।

नए बजट में इन परियोजनाओं के लिए बजट की व्यवस्था दिखाई दे सकती है। वर्ष 2013 में आपदा के कहर से उबरकर केदारनाथ धाम में दूसरे चरण के पुनर्निर्माण कार्य चल रहे हैं। नई बदरीशपुरी का निर्माण कार्य शुरू हो चुका है। नए बजट से इन दोनों ही परियोजनाओं को भी उम्मीदें हैं।

केंद्रपोषित योजनाओं के बजट पर टकटकी

80 प्रतिशत से अधिक पर्वतीय भू-भाग वाले इस प्रदेश में भौगोलिक कठिनाइयों के कारण दुर्गम क्षेत्रों के विकास में केंद्रपोषित योजनाओं और केंद्रीय सहायता की निर्णायक भूमिका है। बिजली, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कों समेत मूलभूत सुविधाओं के विस्तार के लिए इन्हीं योजनाओं का सहारा है।

जल जीवन मिशन, पीएमजीएसवाइ, शहरी विकास से जुड़े मिशन, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, नमामि गंगे समेत 17 केंद्रीय योजनाओं के बजट पर भी टकटकी लगी हुई है। प्रदेश में बिजली आपूर्ति नेटवर्क को मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार ने 3000 करोड़ से अधिक की योजनाओं पर सैद्धांतिक सहमति दी है। नए बजट में इस सहमति के बल पर उत्तराखंड ऊर्जा क्षेत्र में तेजी से कदमताल करता दिखाई पड़ सकता है।

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