सिलक्यारा टनल रेस्क्यू ऑपरेशन: अमेरिकन मशीन भी हुई फेल, काम रुका; अब होगा Plan B तैयार

7 दिन से टनल में फंसे हैं आठ राज्यों के 40 लोग बाईपास बनने में लगेगा कम से कम 4 महीने का समय कैसे जीवित रहेंगे, सभी चिंतित; परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल

उत्तराखंड के यमुनोत्री एनएच पर दुनिया की हर हाईटेक मशीनरी के लिए चुनौती बना सिलक्यारा टनल रेस्क्यू ऑपरेशन सातवें दिन भी जारी है। अमेरिका से आई हाईटेक ऑगर मशीन भी इस ऑपरेशन को सफल करने में नाकामयाब बताई जा रही है। अब टनल में बाईपास सुरंग बनाकर किसी तरह मजदूरों को बाहर निकालने की कोशिश जारी है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अब बाईपास ही एक माध्यम है क्योंकि अमेरिका से आई हाईटेक मशीन ने जैसे ही खोदना शुरू किया, इससे टनल में कंपन होने पर मजबूर, निराश, हतास मजदूरों का रास्ता बनने की बजाय और ज्यादा टनल का हिस्सा धंस गया है। वहीं, जहां पर करीब 2200 मीटर दूर मजदूर मौजूद हैं वहां भी दरारें आने लगी हैं, जिससे हालात और अधिक खराब होते जा रही हैं। बाईपास टनल बनाने में करीब 3 महीने लगेंगे जिससे अंदर फंसे 40 लोग कैसे सरवाइव कर पाएंगे यह बड़ा सवाल है।

इसे बाबा बौखनाग का दैवीय प्रकोप कहें या फिर यहां निर्माण कर रही भारत सरकार की एजेंसी की अदूरदर्शिता जिससे 4:30 साल में पहले तो इस सुरंग का निर्माण ही नहीं हो पाया, वहीं दूसरी ओर जहां पर जमीन में ऐसे प्रोजेक्ट बनते हैं उसमें सबसे पहले एमरजेंसी एग्जिट जरूर होता है। भारत में ऐसी अदूरदर्शी और बिना प्लान के टनल में कई लोग दब चुके हैं, जो मीडिया की सुर्खियां नहीं बनते। ऐसी जगह पर गहरा खोदा जाता है कम से कम एमरजैंसी एग्जिट जरूर होता है।

जानकारी के अनुसार कई ऐसे टनल हादसे हैं जो मीडिया की नजर में नहीं आ पाते हैं जिससे कई बार मजदूर साइट पर ही दब जाते हैं और देश दुनिया को कोई खबर तक नहीं लगती।

सिलक्यारा टनल हादसे में मीडिया की सक्रियता के कारण यह कहीं न कहीं भारत सरकार, उत्तराखंड सरकार और निर्माण एजेंसी के लिए गले की हड्डी बनता जा रहा है। कई लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि उतना सुरंग के निर्माण में नहीं खर्च होता जितना कि मजदूरों के रेस्क्यू में खर्च करना पड़ रहा है। दूसरी ओर निर्माण कर रही कंपनी न तो समय पर इसे पूरा कर पाई और न ही निर्धारित बजट के अंदर सभी काम हुए हैं। इसका डीपीआर बढ़ाने का भी प्रस्ताव सरकार के पास दिया जा चुका है। अब तो दूसरा प्रस्ताव भी मजदूरों को बचाने के नाम पर धड़ाधड़ पास हो रहा है।

दूसरी ओर वहां फंसे मजदूर भी कहीं न कहीं निराश और हताश होते जा रहे हैं। उनके परिजनों के साथ ही हर देशवासी चिंतित हैं ये जिंदा भी रहेंगे या फिर ऐसे ही दफन हो जाएंगे। देश, दुनिया की नजर पूरे टनल के रेस्क्यू ऑपरेशन पर बनी है।

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